Snake (Naga) Story in Hindi : हमारे धर्म ग्रंथो में शेषनाग, वासुकि नाग, तक्षक नाग, कर्कोटक नाग, धृतराष्ट्र नाग, कालिया नाग आदि नागो का वर्णन मिलता है। आज हम आपको इस लेख में इन सभी नागो के बारे में विस्तार से बताएंगे। लेकिन सबसे पहले हम आपको इन पराकर्मी नागों के पृथ्वी पर जन्म लेने से सम्बंधित पौराणिक कहानी सुनाते है।
इन नागो से सम्बंधित यह कथा पृथ्वी के आदि काल से सम्बंधित है। इसका वर्णन वेदव्यास जी ने भी महाभारत के आदि पर्व में किया है। महाभारत के आदि पर्व में इसका वर्णन होने के कारण लोग इसे महाभारत काल की घटना समझते है, लेकिन ऐसा नहीं है। महाभारत के आदि काल में कई ऐसी घटनाओं का वर्णन है जो की महाभारत काल से बहुत पहले घटी थी लेकिन उन घटनाओ का संबंध किसी न किसी तरीके से महाभारत से जुड़ता है, इसलिए उनका वर्णन महाभारत के आदि पर्व में किया गया है।
नागो की उत्पत्ति :
कद्रू और विनता दक्ष प्रजापति की पुत्रियाँ थीं और दोनों कश्यप ऋषि को ब्याही थीं। एक बार कश्यप मुनि ने प्रसन्न होकर अपनी दोनों पत्नियों से वरदान माँगने को कहा। कद्रू ने एक सहस्र पराक्रमी सर्पों की माँ बनने की प्रार्थना की और विनता ने केवल दो पुत्रों की किन्तु दोनों पुत्र कद्रू के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली पराक्रमी और सुन्दर हों। कद्रू ने 1000 अंडे दिए और विनता ने दो। समय आने पर कद्रू के अंडों से 1000 सर्पों का जन्म हुआ।
पुराणों में कई नागो खासकर वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कार कोटक, नागेश्वर, धृतराष्ट्र, शंख पाल, कालाख्य, तक्षक, पिंगल, महा नाग आदि का काफी वर्णन मिलता है।
कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे। इनका एक नाम अनन्त भी है। शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता व भाइयों ने मिलकर विनता के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।
ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।
वासुकि नाग (Vasuki Nag) :
धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। ये भी महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान थे। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। इनकी बुद्धि भी भगवान भक्ति में लगी रहती है। जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा।
तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया। आस्तीक ने ही प्रिय वचन कह कर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्रमंथन के समय नागराज वासुकी की नेती बनाई गई थी। त्रिपुरदाह के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।
तक्षक नाग (Takshak Nag) :
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